अच्छे और बुरे कर्मों का भोग, एक मिनट निकालकर इस पोस्ट को पढ़ें

कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वासुदेव को छुड़ाया। 

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तब माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, बेटा, तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की . ?

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भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, क्षमा करें आदरणीय माता जी, क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।

माता देवकी आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा, बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है.? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो.? हम आपके माता-पिता हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।

माता देवकी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा कि फिर इस जन्म में रानी कौशल्या कौन है? हमें भी बताओ कृष्ण, हमें भी जानना है।

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भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला. !

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अर्थात, प्रत्येक प्राणी को इस मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भोगना ही पड़ता है। यहां तक कि देवी-देवता भी इससे अछूते नहीं हैं।

अहंकार के बंगले में कभी प्रवेश न करें, और मनुष्यता की झोपड़ी में जाने से कभी संकोच नहीं करना चाहिए। आप जो भी कार्य करेंगे उसका फल आपको अवश्य मिलेगा।

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हमेशा अच्छे कर्म करते रहे है और जैसा कर्म करेंगे वैसा ही आपको फल मिलेगा। आपको यह छोटी सी कहानी पसन्द आयी तो कमेंट में जय श्री कृष्णा लिख कर इस पेज को अभी फॉलो करें।